Sunday, June 1, 2025

Psychological warfare, know the facts about narratives 11

 आम इंसान बुरा नहीं है। जुआ खेलने वाली पार्टियाँ शिकारी हैं? जो आम इंसान की जानकारी के बिना उसका शिकार करती हैं? सर्विलांस एब्यूज इसमें बहुत बड़ी भूमिका में है। जितनी ज्यादा किसी के पास आपकी जानकारी, उतना ही आसान है, आपको रिमोट कण्ट्रोल करना। जितनी ज्यादा किसी भी परिवार या समाज की जानकारी, उतना ही आसान है, उस परिवार या समाज को कण्ट्रोल करना। 

इन पिछले कुछ सालों में ये सब इतना पास से होते हुए देखा है की यूँ लगता है, ये टेक्नोलॉजी का दुरुपयोग, कुर्सियों की और बाजार की मारकाट, इंसान को और उसके इस समाज को कहाँ लेकर जाएँगे?  

Ghosting?

क्या बला है ये? शब्द सबसे पहले कहाँ पढ़ा था? 

कोई वेबसाइट बनाने का इरादा था शायद तब? नहीं, उससे भी पहले Ghost Writer या Ghost Writing क्या होती है? डेढ़ एक दशक पहले कहीं पढ़ा था शायद? ये शब्द Connecting Links Inbetween पर भी प्रयोग हो सकता है। और Political Tunnels पर भी। ये किसी या कुछ लोगों के आपकी ज़िंदगी या आसपास से एकदम से गुल हो जाना भी हो सकता है (Ghosting)। और? जो आप पर Surveillance कर रहे हैं और उसका किसी भी तरह का प्रयोग या दुरुपयोग उन पर भी। ऐसे लोग जो आपकी जानकारी के बिना साए से आपके आसपास मँडराते हैं? 

अब ये शायद थोड़ा और आगे हैं? अपने राजस्थानी (?) Cyber Dost?


कैसे? सुना है, वैसे तो ये पुलिस हैं और प्रहरी हैं, हम सबके। और ऐसे?   
जैसे बूझो तो जाने। आगे पोस्ट में। क्यूँकि, कुछ गड़बड़ घौटाला यहाँ भी है। भला क्या? थोड़ा बहुत भी अगर आप Cyber Crime के बारे में जानते हैं, तो इस वेबसाइट को ध्यान से पढ़ो और समझने की कोशिश करो। कुछ नहीं, बल्की, बहुत-कुछ समझ आएगा। और ये बहुत-कुछ हर सरकारी या गैर-सरकारी कांडों या निहित स्वार्थों या शायद मजबूरियों पे लागू होता है। और रौचक ये, की ये सब भी आपको यही पढ़ा या समझा देते हैं, कहीं न कहीं। है ना मजेदार :)

ये कुछ-कुछ ऐसे है जैसे, कोई नया-नया पुलिस अधिकारी आपकी फाइल लिए बैठा हो। नहीं, शायद उसके ऊपर बैठा हो। 8-9 महीने आपके खूब चक्कर कटवाए। क्यूँकि, उसके उप्पर भी कोई बैठा हो और उसके उप्पर भी कोई। और?
उनसे उप्पर भी कोई, जो कह रहा हो शायद आपसे या कह रहे हों, "ऐसे पिंड मत छोड़ो इनका, फँसे हुए हैं ये। मान के चलो, की हर बाप का और हर बॉस का एक बॉस होता है।" और आपको लगे, अरे यहाँ तो सुनने वाले भी हैं?  

और? कोई 8-9 महीने बाद आपको उसी अधिकारी का कोई जवाब मिले (RTI के बाद), की ये केस मैं नहीं देख सकता। ये तो मेरे सीनियर ऑफिसर के खिलाफ है। अरे? तो इतना-सा बोलने में इतने महीने क्यों खा गए? कोई तो मजबूरी रही ही होंगी? क्यूँकि, ये सब उस जूनियर अधिकारी ने अपने तबादले के बाद या आसपास लिखा। 2015 की बात है शायद ये। ऐसे ही कई और वाक्या हुए। 

जैसे कोई दोस्त (कमीना) बोले, हाँ। पता चल गया, तो क्या कर लिया? और आप हक़्क़े-बक्के से जैसे, देखते ही रह जाएँ, की इसे कोई गिल्ट या मलाल तक नहीं है, की इसने कुछ बुरा किया है या शायद बहुत बुरा किया है? और फिर कहीं पढ़ने को मिले। अभी आप जानते क्या हो? इससे आगे बहुत कुछ है। हाँ। उससे आगे भी बहुत कुछ देखा, सुना या समझने को मिला। कोरोना काल मौतें या हत्याएं? आम लोगों द्वारा आत्महत्याएँ या हत्याएँ? भेझे के बहुत से पूर्जे, बहुत तरह से हिल गए जैसे। ये दुनियाँ वो कहाँ है, जिसे मैं जानती थी? ये तो कोई और ही मशीनी युग है? या शायद इंसान और मशीनों के बीच कोई युद्ध है? 
  
कहाँ इस युद्ध के मारा-मारी के सैनिक और कहाँ बेचारे पानी की छोटी-मोटी बिमारियों से झुझते आम लोग? "गूँधनी हो गई। इक्क्ठ्ठी सात होती हैं ये।" ऐसे में बच्चों को पढ़ाना आसान होगा शायद, की Water या Bacterial या Microbial Infections कैसे होते हैं और कैसे उनसे बचा जा सकता है या होने पर उनका ईलाज घर पर ही किया जा सकता है। दादियों, चाची-ताइयों या शायद ऐसे कम पढ़े लिखे और कई पीढ़ियाँ जैसे पीछे रहने वाले दादों या चाचे-ताऊओं या बहनों की सुनने की बजाय, किसी गूगल बाबा या सर्च इंजन से पूछ लो, तो आपके झोला-छाप डॉक्टरों से बेहतर बताएँगे और समझायेंगे शायद।    


गूगल AI ज्ञान 

Friday, May 23, 2025

Psychological warfare, know the facts about narratives 10

 डोमेश्वर (D   -omeshwar?) 

Shows and Theatrics? Even Defence Theatre and Theatrics? 

डूम आ रहे हैं? 

Veterans?

और भी कितनी ही तरह के नाम दिए जा सकते हैं? रोमा, यूरोप? गड्डे लुहार, उत्तर भारत? ज्यादातर, समाज के आज के युग से दूर रहने वाले कबीले या लोग?       

और भी कितनी ही तरह के ईश्वर या भगवान या देवी-देवता? जितने इंसान, उतनी ही तरह के भगवान या देवी-देवता? जैसे भगवान और देवी-देवता घड़ना एक कला है, Art and Craft है। 

वैसे ही, और शायद उतनी ही तरह के भूत और भय पैदा करने के तरीके? किसी भी आम इंसान, परिवार या समाज के किसी हिस्से को विचलित करने के लिए? कुछ ना होने देने के लिए या कुछ खास करने या करवाने के लिए? या शायद राक्षस, डायन, विच जैसी wichhunting के लिए?  

Witchhunting? क्या बला है ये?

जिस इंसान को राजनीती, तथ्यों से काबू नहीं कर पाती, वहाँ Character Assassination और Witchhunting का प्रयोग होता है। यहाँ लिंगभेद भी नहीं होता। ये किसी भी लिंग के खिलाफ हो सकता है। या कहो की होता आया है। जितना बड़ा दॉँव लगा होता है, उतने ही ज्यादा घिनौने और बेहुदा तौर-तरीकों का प्रयोग होता है।

और ये सब करने के लिए राजनीती, कैसे और किस तरह के लोगों का प्रयोग या दुरुपयोग करते हैं?

शायद खुद आपका? आपके अपनों का या आसपास वालों का भी? ऐसे लोगों का जिनके अपने कोई निहित स्वार्थ हों? या शायद जो आपसे किसी भी तरह की चिढ़ या जलन रखते हों? या शायद जो किसी भी तरह की असुरक्षा की भावना से ग्रषित हों? जिन्हें खुद अपना महत्व या वैल्यू ना पता हो? ऐसे ही लोग, दुसरों को गिराने का काम करते हैं? क्यूँकि, उनके पास कुछ अच्छा देने के लिए होता ही नहीं? या शायद, उन्हें ऐसा लगता है? इसीलिए, असुरक्षा की भावना लिखा है। ऐसे लोग, जिन्हे खुद का महत्व न पता हो। ऐसे लोगों की असली दिक्कत आप नहीं हैं। खुद उनकी अपनी कोई समस्या, या कमी है शायद?  

जब यूनिवर्सिटी थी, तो लगता था की कुर्सियों की लड़ाई है, जिसमें ऐसे लोग भी झाड़ की तरह पिस रहे हैं, जिन्हे ऐसी-ऐसी कुर्सियों से कोई लगाव नहीं है। गाँव में आसपास के रोज-रोज के भद्दे और बेहूदा ड्रामे देखे, तो समझ आया, की ये कौन-सी कुर्सियों की लड़ाई है? यहाँ तो लोगों के पास, आम-सी सुविधाएँ तक नहीं? ऐसे-ऐसे ड्रामे, जो आदमियों को खा जाएँ? जिस किसी से ये राजनीतिक पार्टियाँ, ये सब ड्रामे करवाएँ, उन्हीं को या उनके अपनों को खा जाएँ? 

कोरोना काल, एक ऐसा दौर था, जहाँ मौतें नहीं, हत्याएँ थी। सिर्फ सत्ता द्वारा? या राजनीतिक पार्टियों की मिलीभगत द्वारा? या राजनीतिक पार्टियों के सिर्फ कुछ लोगों की मिलीभगत द्वारा? दुनियाँ भर के मीडिया ने, या कहो की मीडिया कल्चर ने उसमें बहुत जबरदस्त तड़का लगाया। 

उसके बाद भाभी की मौत के बाद के ड्रामे? कई लोग तो आसपास चलते-फिरते शैतान या डायन जैसे नज़र आ रहे थे। उन बेचारों को शायद यही नहीं समझ आया, की वो बक क्या रहे थे? किसी इंसान के दुनियाँ से ही जाने के बाद, उसकी witchhunting? ऐसे क्या स्वार्थ थे, इन लोगों के? अब पूरे हो गए क्या वो स्वार्थ? Psychological manipulations at extreme जैसे? और कहीं पढ़ने-सुनने को मिला, की इसी को Psychological Warfare कहते हैं। यहाँ कोई असुरक्षा की भावना से ग्रषित इंसान, सामने वाले का किसी भी हद तक नुकसान कर सकता है। आम लोगों की छोटी-छोटी सी असुरक्षा की भावनाओं का दुहन करती, राजनीतिक पार्टियों की बड़ी-बड़ी कुर्सियों की लड़ाईयाँ? क्या का क्या बना देती है?

ये सब यहीं नहीं रुका। आसपड़ोस में भी फैला। वो भी ऐसे की बड़े-बड़े लोग, आत्महत्याएँ कैसे होती हैं या की जाती हैं, ये बता रहे हों? वो भी डॉक्युमेंटेड जैसे? कौन-सी दुनियाँ है ये? जो स्कूल के बच्चे या बच्चियों तक को ना बक्से? सिर्फ राजनीतिक पार्टियों की कुर्सियों की महत्वकाँक्षाओं की वजह से, या शायद बड़ी-बड़ी कंपनियों के बाज़ारवाद की मारकाट की वजह से?  

ऐसे अंजान अज्ञान लोगों को कौन बचा सकता है? क्यूँकि, सारी दुनियाँ तो कुर्सियों या बाजारवाद की दौड़ में नहीं है? संसार का सिर्फ कुछ परसेंट हिस्सा है। और वही मानव रोबॉट घड़ रहा है, कहीं किसी नाम पर, तो कहीं किसी नाम पर। 

Thursday, May 22, 2025

Psychological warfare, know the facts about narratives 8

हर रोज यहाँ पे कुछ न कुछ घटता ही रहता है। कुछ नौटँकी, कुछ ड्रामे, कल्टेशवर (cult-eshwar?) टाइप? क्या है ये कल्टेशवर? या इस तरह के ड्रामे या नौटंकियाँ? आम लोगों की रोजमर्रा की ज़िंदगी के अहम हिस्से जैसे? रोज-रोज उनकी ज़िंदगियों में जो होता है, वो सब। 

मैंने नौकरी से रिजाइन किया ही था, और घर आना-जाना थोड़ा बढ़ गया था। यूनिवर्सिटी में रेगुलर हाउस हेल्प्स को मैं हटा चुकी थी। और ज्यादातर वीकेंड्स पर ही लेबर को बाहर से लेकर आती थी। तो ज्यादातर वीकेंड्स पर, अलग-अलग लेबर होता था। किसी को भी घर में एंट्री से पहले ही, उसके बारे में थोड़ा-बहुत जानकारी लेना पहला काम होता था। ये जानकारी लेना, सिस्टम के कण्ट्रोल चैक पॉइंट्स को समझने में बड़ा मददगार रहा। कौन, कहाँ से है? क्या नाम है? घर में कौन-कौन हैं? रोहतक में कहाँ रहते हैं और कब से रहते हैं? किस तारीख को कौन लेबर आपको मिलेगा और कहाँ से मिलेगा? कहाँ का होगा? उसका नाम, पता क्या होगा? उसके घर पर कौन-कौन होगा? वो कितने पैसे माँगेगा और कैसा काम करेगा; तक जैसे कहीं तय हो रहा हो? और हाँ, किस दिन या तारीख को आपको लेबर नहीं मिलेगा? इतना कुछ कैसे कोई तय कर सकता है? शुरु-शुरु के कुछ महीने तो जैसे, बड़े ही अजीब लगे। और जाने कितने ही प्रश्न दे गए। 

ज्यादा घर आने-जाने ने, यूँ लगा, जैसे इस समस्या को थोड़ा कम दिया। यहाँ पे जो काम करने वाली आती थी, उनसे बात की और उन्होंने हफ़्ते, दो हफ़्ते में एक दो, बार करने के लिए हाँ कर दिया। ये लोग मेरे लिए नए थे। जो बचपन में इन घरों में काम करने आते थे, ये वो नहीं थे। खैर। मेरा काम हो रहा था। और मुझे क्या चाहिए? मगर कुछ ही वक़्त बाद, यहाँ भी आना-कानी शुरु हो गई। काम करने वालों की अपने-अपने घरों की समस्याएँ। थोड़ा बहुत जब उनके बारे में जाना तो लगा, ये तो कुछ ज्यादा ही नहीं हो रहा? गाँव के लोगों की समस्याएँ, अक्सर ज्यादा ही होती है? और थोड़ी अटपटी भी? मगर वो किसी सिस्टम के कल्टेशवर या कल्टेशवरों से भी अवगत करा सकती हैं क्या? तब तक ये cult वाली टर्मिनोलॉजी या ये सब होता क्या है, यही नहीं पता था। 

शिव सोलाह? 

या हनुमान चालीसा? 

संतोषी माँ? 

या शेरा वाली माँ? 

माता धोकन जाऊँ सूँ? 

या झाड़ियाँ की धोक?   

साधारण से लोगों की साधारण-सी ज़िंदगियाँ? या ऐसे-ऐसे सिस्टम की चपेट में ज़िंदगियाँ? ऐसे-ऐसे सिस्टम के कल्टेशवर या कल्टेशवरों की देन?

बीमारियाँ?

भूत कहानियाँ?

मौतें? 

अनाथ बच्चे? 

एक राज्य से दूसरे राज्य में ट्रेड की हुई औरतें?

सिमित ज्ञान और सिमित संसाधन?

और इस सबके बीच या कहो की इस सबको बनाने वाले सिस्टम के कल्टेशवर या कल्टेशवरों का ऐसे-ऐसे अंजान, अज्ञान लोगों का शोषण?      

और जाने क्यों, इस सबने मुझे फिर से यूनिवर्सिटी के H #16, Type-3 वाले स्टोर की याद दिला दी। "मैडम, ये स्टोर मैं साफ़ नहीं करुँगी।"

मगर क्यों? पीछे पढ़ा होगा आपने कहीं, पोस्ट में?                                      

Psychological warfare, know the facts about narratives 9

 तुम अपने घर का स्टोर क्यों नहीं साफ़ कर लेते? उनमें सिस्टम के कल्टेशवर या कल्टेशवरों द्वारा बिठाए नुक्सान पहुँचाने वाले भूतों से मुक्ती क्यों नहीं ले लेते?

और स्टोर ही क्यों? बाकी घर में भी साफ-सफाई करते रहने में क्या बुराई है? दिवाली या त्योहारों पे जो खास-सफाई का चलन है, उसके पीछे शायद ये एक अहम पॉइंट है। दिवाली या त्योहारों के इंतजार की बजाय, उसे हफ़्ते या महीने भर में होने वाली सफाई क्यों नहीं बना लेते? सफाई, जो सिर्फ आपके घर तक सिमित ना रहकर, आसपास का भी ध्यान रखती हो? सफाई ना सिर्फ़ आँखों और मन को शुकुन देती है, बल्की, समृद्धि का भी प्रतीक है। ये सेहत, पैसा और सुख-शांती को आकर्षित करती है। या कहो की सफाई और सेहत, पैसा और सुख-शांती एक दूसरे के प्रतीक हैं? 

सफाई के साथ-साथ, खुले-खुले घर और खुली-खुली जगहें स्वास्थ्य का परिचायक हैं। ऐसी जगहें या घर ना सिर्फ गर्मी-सर्दी को संतुलित रखती है, बल्की, प्रदूषण को भी कम करने का काम करती हैं। कैसे?

एक हज़ार गज में 10 घर और कितने आदमी? कितना पानी, हवा या ज़मीन का प्रयोग या दुरुपयोग? जहाँ पानी नहीं आता या ज़मीन का पानी कड़वा है, वहाँ ये समस्या और भी ज्यादा है। हर घर में तकरीबन वहीँ पे बाथरुम, लैट्रिन और वहीँ पर हैंडपंप या समर्सिबल? गोबर और केमिकल्स भी वहीँ जा रहे हैं और प्रयोग करने के लिए पानी भी वहीँ से लिया जा रहा है?  

दूसरी तरफ 1000 गज में एक या दो घर और कितने आदमी? बाथरुम, लैट्रिन, हैंडपंप या समर्सिबल कितने आसपास या दूर? या शायद पानी की सप्लाई भी बाहर से ठीक ठाक आ रही हो? हैंडपंप या समर्सिबल जैसी कोई बला ही ना हो? 

एक तरफ, अंदर-बाहर दोनों खुले-खुले आँगन और बना हुआ घर। और दूसरी तरफ, खुले घर आँगन को जैसे छोटे-छोटे खामखाँ से कैबिन में बाँट दिया हो? हवा बेचारी कहाँ, कितनी आर-पार होगी? तो गर्मी या सर्दी के क्या हाल होंगे वहाँ?

खुले आँगन में ज़मीन में पेड़ लगाना? या आँगन को भी कैबिन-सा बना, पेड़ों को हटा, छोटे-मोटे एक आध गमलों को जगह? लाभदायक पेड़ों की बजाय खामखाँ से या एलर्जी वाले पेड़ों को जगह? कहीं ठीक-ठाक जगहों के होते हुए भी, तुम्हारे घरों के हुलिए तो नहीं बिगाड़ दिए सिस्टम के इन घड़ने वालों ने? और तुम्हें लग रहा है, की सब खुद तुमने किया है?     

सुना है, की घर में टूटे-फूटे सामान को रखना अशुभ माना जाता था? या तो उसे चलता कर नया ले लिया जाता था या काम का हो, तो ठीक कर लिया जाता था? या देने लायक हो, तो किसी को दान? फिर वो चाहे घर के बर्तन-भाँड़े हों या पहनने या घर में प्रयोग होने वाले किसी भी तरह के कपड़े? ऐसे ही शायद घर की टूट-फूट या रख-रखाव का होता होगा? दिवाली जैसे त्यौहार पर साफ़-सफाई, शायद, इसीलिए ईजाद की गई होगी की ऐसे-ऐसे सामान से भी मुक्ती पाई जा सके? रंग रोगन या थोड़ी बहुत रौनक लाई जा सके? ऐसे सामान से मुक्ती। आप इंसानो से ना समझ बैठना। नहीं तो कहीं कोई बुजुर्ग या बिमार इंसान ये भी कह सकता है, "हाँ, हम भी काम-धाम के नहीं रहे, कर दो चलते" :)    

Psychological warfare, know the facts about narratives 7

 They have seasons. Season 1, season 2, season 3 and so on. 

In which season are you right now?

Evergrowing?

Everlearning?

Evergoing ahead?

Or ever losing?

Depends?


Who has asked this question and for what purpose? There is no one answer or fit for all?

Boss?

Boss? Word is bad enough and better to leave behind? Interesting? 


Is it the purpose or situation at particular time that demans your attention?

Pupose long term. Situation, temporary, but at times, demands attention as well as time.


Since some time, I am hooked to ED. 

ED?

What kind of ED is that? Kinda ED in or ED out? I got many prompts from there for my posts. At times,interesting and helping. At times, as usual like random online stuff.

Balance. Personal and professional space. Home and office duties and responsibilities as well as rights.

Here I did not find jobs, but sermons. Interesting? Job skills? Life skills? Or what's wrong and right at these two places? And how they are so interconnected? People who instead of protecting you, put you through fire? Instead of warning you, put you through trials? Are they family or calling self your people? Maybe extended family?

But then, is not that true for the surrounding also, I am living right now? Remote controlled lives via surveillance abuse? 

Be it so-called extended family or sermon givers themselves, are not they exploiting less priviledged people this way?

Friday, May 16, 2025

Psychological warfare, know the facts about narratives 6

 Factteller, Fictionteller or Storyteller?


Setting the narrative is art and craft? 

--to gain advantage by applying psycological measures and surveillance abuse?

Or maybe for correctional measures?

Depends?

नरेटिव घड़ना अगर कला है, तो नरेटिव के सच को जानना? 

कहानियाँ सुनाना, पुरानी कला है। पहले दादा-दादी या नाना-नानी सुनाते थे, तो बच्चे अपने बड़ों से जुड़ाव महसूस करते थे। फिर TV, मोबाइल और इंटरनेट का जमाना आया और लोगों ने अपना वक़्त बच्चों को देने की बजाय, मोबाइल, टीवी या टेबलेट्स, लैपटॉप वैगरह पकड़ाना शुरु कर दिया। इसे ये सब चलाने वालों ने समझा और एक अलग तरह का शोषण शुरु हो गया?

टीवी, मोबाइल, इंटरनेट अच्छा भी दिखाता है और बुरा भी। वक़्त इसके कारण कहाँ जाता है, पता ही नहीं चलता? माँ, बाप भी अपना काम ऐसे में आसानी से कर पाते हैं। क्यूँकि, बच्चे ये सब मिलने के बाद तो माँ, बाप को जैसे भूल ही जाते हैं? और माँ-बाप बच्चों को? दोनों का काम आसान हो गया? या मुश्किल? ये वक़्त बताता है? 

ये सिर्फ बच्चों पर लागू नहीं होता। बड़ों पर भी होता है। मतलब, लोग मोबाइल, टीवी, इंटरनेट की दुनियाँ में इतने वयस्त हो गए, की एक दूसरे को ही भूल गए? पहले मुझे लगता था की ये ज्यादातर शहरों की समस्या है। मगर, गाँव आकर समझ आया, की शहरों से ज्यादा, गाँवों या कम पढ़े लिखे लोगों की ज्यादा है? इसलिए उन्हें अपने बच्चों के बारे में ही नहीं पता होता की वो क्या देख रहे हैं, क्या सुन रहे हैं या क्या कर रहे हैं? और घर के लोगों में दूरियाँ बढ़ती जाती हैं। एक दूसरे के बारे में ही नहीं पता, तो वो कैसे घर? कैसा घर-कुनबा? इसका फायदा सर्विलांस एब्यूज करने वाली पार्टियाँ और कम्पनियाँ बड़ी आसानी से भुनाती हैं। ऐसे लोगों को रोबॉट बनाना बहुत ही आसान होता है। एक दूसरे के ही खिलाफ प्रयोग करने में, ये अहम भूमिका निभाता है। 

पहले मुझे लगता था की मैं 10th के बाद ही घर और गाँव से दूर हो गई, तो शायद मेरा घर पर विचारों में मतभेद का ये अहम कारण है। क्यूँकि, मैं यहाँ रही ही कहाँ? 

यहाँ आकर पता चला, की मैं थोड़ा दूर रहते हुए भी पास थी। कम से कम फ़ोन पर तो, सबसे बात हो जाती थी। यहाँ तो पास होते हुए लोगों के पास वक़्त नहीं, एक दूसरे के लिए। लोगबाग यहाँ आसपास रहते हुए, एक-दूसरे के बारे में कहीं और से ही ज्ञान लेते हैं। और वहीं मार खाते हैं। जो बच्चे स्कूल के बाद ही पढ़ाई छोड़ देते हैं, या स्कूल के वक़्त ही उल्टे-सीधे केसों में फँस जाते हैं, उनके लिए ये दूरी बहुत बड़ी भूमिका निभाती है। राजनीतिक पार्टियाँ ऐसे बच्चों को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ती।      

सामान्तर घड़ाईयाँ, इसका जीता जागता उदाहरण हैं। लेकिन ये सामान्तर घड़ाईयाँ हैं बड़ी अज़ीब। जैसे कुछ एक केसों में पीछे बताया, की कितना बढ़ा-चढ़ाकर या तोड़-मरोड़ कर घड़ी जाती हैं, ये सामान्तर घड़ाईयाँ। थोड़ा पता होगा तो लगेगा, यहाँ और वहाँ जैसे एक जैसा-सा हो रहा है। मगर, जब पास से हर रोज ऐसी सामान्तर घड़ायीयों को होते देखोगे, तब समझ आएगा की बढ़ाना-चढ़ाना, तोड़ना-मरोड़ना या कुछ नया मिर्च-मसाला जोड़ना, ऐसे में कितना आसान है। 

जैसे?

कहाँ फेसबुक पर झंडा गाडना और कहाँ किसी लेट को रेत से भरकर, उसपर झंडा गाडना? दोनों एक ही बात हैं क्या?

ऐसे ही जैसे, कहाँ टाँग तुड़वाकर बैड पे पड़ा होना या ऑफिस से छुट्टी लेकर फिजियो और एक्सेरसाइज़ पर सारा दिन बिताना और कहाँ वो तो live-in रह रहे थे का, किसी और स्कूल बच्चे का केस? स्कूल बच्चे का केस?

ऐसे ही जैसे, कहाँ किन्हीं रिश्तों पर जुए के नंबरों की मार और कहाँ किसी को दुनियाँ से ही उठा देना? एक ही बात हैं क्या?

ऐसे ही जैसे, एक कोई छेड़छाड़ या रेप का केस और कहाँ उन्होंने कट्टे से फलाना-धमकाना को उड़ा दिया। एक ही बात है? 

ऐसे ही जैसे, कहाँ किताबों का पढ़ना, लाब्रेरी या किताबों का लेन-देन और कहाँ CHAT-GPT, AI और उनके प्रयोग और दुरुपयोग?

ऐसे ही जैसे, कहाँ बन्दूक या पिस्तौल की गोली और कहाँ चोरी-छिपे, खाने-पानी में किन्हीं गोलियों की सप्लाई? 

ऐसे ही जैसे, कहाँ किसी चैट में या ऑनलाइन गुनाह के फूटप्रिंट्स का होना और कहाँ मकानों, दुकानों या ऑफिसों की ईमारतों और सामान में?

ऐसे ही जैसे, कहाँ राजनीति के जुए की बिमारियों की घढ़ाईयाँ और कहाँ खाना-पानी और हवा को प्रदूषित कर, लोगों की सेहत या ज़िंदगियों से ही खेलना?  

ऐसे ही जैसे?

कितने ही, ऐसे ही जैसे, आपके अपने आसपास भरे पड़े हैं। इन्हें और इनके भेदों या फर्क को समझना बहुत जरुरी है, किसी भी स्वस्थ समाज के लिए या आगे बढ़ने के लिए।   

पीछे कुछ अजीबोगरीब से ड्रामे चले। या कहो की रोज चलते ही रहते हैं। मगर, जिनसे वो करवाते हैं, उन्हें उनके दुष्परिणाम कहाँ पता होते हैं? आगे यही ड्रामे करवाने वाले, क्या करेंगे इन लोगों के साथ?  

Thursday, May 15, 2025

Psychological warfare, Setting the narratives 5

 सुना, कुछ लोग, कुछ पोस्ट से बुरा महसुश कर रहे हैं? 

क्यों?

किसी ने आपपे जैसे देशद्रोही सी मोहर लगा दी? पाकिस्तानी कह रहे हैं? चीनी? नेपाली? या किसी भी तरह का अंग्रेज? या अफ्रीकन? जबकि, आप तो ऐसा कहने वालों से कहीं ज्यादा पक्के भारतीय हैं? तो बुरा तो लगना ही है? कौन हैं ये लोग, जो ऐसी कोई मोहर ठोक रहे हैं आपपे?  

आपका जन्म भारत का है? 

आपके माँ, बाप, दादा, नाना सब भारत में ही पैदा हुए? 

आपकी पढ़ाई और परवरिश भी भारत में ही हुई या हो रही है?

आपके सब पहचान पत्र भी भारत के ही हैं?

फिर आपको ऐसा कहने वाले या ऐसी मोहर ठोकने की कोशिश करने वाले लोग कौन हैं? और वो ऐसा, क्यों और कैसे कर पा रहे हैं?  

ये चालाक, ध्रुत और शातिर लोग हैं। 

इनको कहानियाँ घड़नी आती हैं। 

सिर्फ कहानियाँ? अरे नहीं, वो तो कितने ही घड़ लेते हैं। 

इनको ज़िंदगियाँ तोड़नी और मरोड़नी आती हैं। 

ये काफी पढ़े-लिखे और दुनियादारी से कढ़े लोग हैं। 

अरे ! अरे ! आप वाली दुनियाँदारी नहीं। इन्होने सच की दुनियाँ देखी हुई है या शायद दुनियाँ भर में घुमते हैं या दुनियाँ जहाँ का ज्ञान है। 

ये किसी क्षेत्र या भाषा में नहीं बंधे हुए। मगर, आप जैसों को बाँधने के औजार (टूल्स) रखते हैं। 

ये आपसे ज्यादा, आप पर और आपके बच्चों पर वक़्त लगाते हैं। ये बहुत अहम है। 

इन्हें इंसानों को ही नहीं, दूसरे जीव-जंतुओं और निर्जीवों तक को अपने अनुसार घड़ना (चलाना) आता है।   

ये आपकी अपनी राजनीतिक पार्टियाँ और ज्यादातर अन्तर्देशीय कम्पनियाँ और उनके पढ़े-लिखे और कढ़े लोग हैं। 

ये समाज को अपने अनुसार घड़ने का काम करते हैं।  

तभी इन्हें पैसा और कुर्सियाँ मिलती हैं। 

ये रोज-रोज के छोटे-मोटे जीने के संसाधनों को इक्कठ्ठा करने के चक्कर में नहीं। बल्की, वर्चस्व की लड़ाई लड़ते हैं। जिनसे इन्हें और ज्यादा पैसा और ताकत मिलती है। 

कैसे?

नैरेटिव सेट करके। आपके आसपास का माहौल घड़ कर। Media Culture Lab 

आपमें भी है क्या ऐसी ताकत? या आप इन्हीं लोगों की एक छोटी-सी कड़ी का काम करते हैं? अपने रोज-रोज के छोटे-मोटे जीने के संसाधनों को इक्कठ्ठा करने के चक्कर में? जानते हैं आगे, की आप क्या कर रहे हैं और ये क्या?