Wednesday, May 7, 2025

Psychological warfare, Setting the narratives 4

 इस जहाँ में लोगबाग रिश्ते-नाते भूल जाते हैं? जाने किस, किसको, क्या-क्या सोचने समझने लग जाते हैं? और?

रिश्ते ना सिर्फ तार-तार होने लगते हैं, बल्की, कहीं इन्हीं Psychological, Physiological और adulterated खाना, पानी या हवा की वजह से बिमारियों की चपेट में आने लगते हैं। कहीं ये बिमारियाँ सिर्फ साइकोलॉजिकल होती हैं और कहीं जहाँ रह रहे होते हैं या जिस आसपास के वातावरण को झेल रहे होते हैं, उस मीडिया कल्चर की देन। सबसे बड़ी बात, उस मीडिया कल्चर का अपना एक कोड, हर इंसान के आसपास मँडराता है जैसे। ठीक ऐसे, जैसे, microbio के मीडिया कल्चर का। जिसमें कुछ खास केमिकल्स होते हैं और एक खास मात्रा। एक खास समय तक कोई रिएक्शन और उसका कोई खास प्रभाव।      

जैसे, एक, दो कैमिकल्स के भी ना होने से या कम और ज्यादा मात्रा में होने से, किन्हीं खास कैमिकल्स को कम या ज्यादा वक़्त या कम वक़्त एक साथ देने से या किसी खास तरह से इंफेक्ट करने से, रिजल्ट अलग-अलग होते हैं। वैसे ही, किसी खास सिस्टम के कोड के इधर-उधर होने से या कम या ज्यादा वक़्त एक साथ या दूर होने से ही कितना कुछ बदल जाता है। यही खेल ये राजनीतिक पार्टियाँ, बड़ी-बड़ी कम्पनियों के साथ मिलकर खेल रही हैं। उसमें आपके जन्म से लेकर मर्त्यु तक सब आता है। सब तरह के उतार-चढाव। बल्की, कहना चाहिए की आपके गर्भ में आने से लेकर, पुनर्जन्म तक के कोढों की माया के जाले बिछे होते हैं। कहीं हकीकत और कहीं महज़ साइकोलॉजिकल। सर्विलांस एब्यूज और इंटरडिप्लीनरी ज्ञान-विज्ञान का प्रयोग और दुरुपयोग, इस सबमें बड़ी अहम भूमिका निभाते हैं।  

इस कोड को, यहाँ के सिस्टम के अनुसार ये बीमारी होगी। 

इस कोड को यहाँ के सिस्टम के अनुसार,  फलाना धमकाना पेपर में इतने नंबर आएँगे।     

इस कोड को, यहाँ के सिस्टम के अनुसार, इतना फायदा होगा या इतना नुक्सान होगा। 

इस कोड को, यहाँ के सिस्टम के अनुसार, इतने बच्चे होंगे। 

इस कोड की, यहाँ के सिस्टम के अनुसार शादी ही नहीं होगी। 

इस कोड की, यहाँ के सिस्टम के अनुसार इतनी लम्बी ज़िंदगी होगी। 

इस कोड की ज़िंदगी में, यहाँ के सिस्टम के अनुसार इतने झमेले और परेशानियाँ झेलनी पड़ेंगी।

इस कोड के जैसे इंसानो की, यहाँ के सिस्टम के अनुसार इतनी जनसंख्याँ होगी। 

इस कोड के जीवों की, यहाँ के सिस्टम के अनुसार इस राज्य या देश में इतनी और इतनी जनसँख्या होगी। 

इस जनसख्याँ में यहाँ के सिस्टम के कोड के अनुसार इतने बच्चे, इतने युवा और इतने बड़े होंगे।  

संभव है क्या? या ऐसा हो रहा है? ऐसा ही नहीं, बल्की, इससे ज्यादा बहुत कुछ हो रहा है। 

तो अगर कहीं का सिस्टेमेटिक कोड आपको या आपके किसी अपने को सूट नहीं कर रहा, तो क्या करोगे? झेलोगे उसे?  

या अगर आपको इतनी-सी जानकारी भी हो गई, तो धीरे-धीरे उसके दुस्प्रभावोँ से बचने के रस्ते भी पता लगते जाएँगे? 

तो क्या हर इंसान के लिए डिज़ाइनर सिस्टेमेटिक कोड घड़ा जा सकता है? या कम से कम optimise तो जरुर किया जा सकता है?

या कहना चाहिए, की वो भी इसी सिस्टेमेटिक कोड की जानकारी में कहीं छुपा है?   

और ऐसा होने पर कहीं की भी राजनीतिक पार्टियाँ, इन बड़ी-बड़ी कंपनियों के साथ मिलकर, आम इंसान का इतना और इतनी आसानी से यूँ शोषण नहीं कर पाएँगी? जितना और जितनी आसानी से अब कर पा रही हैं?  

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