Friday, October 31, 2025

Modren Warfare Pros and Cons 11

Interesting diseases and interesting treatment?

A close friend father had the symptoms of paralysis. They took some treatment from nearby village Girawar. You might think why Girawar when PGI is nearer them? They always used to go to PGI, Rohtak or AIIMS, Delhi earlier, as these both were comparatively near to their home. Even I heard this first time from her. 

But Girawar name was not the first time for this disease. One day, I was coming back to my village Madina from Rohtak and a lady in the same vehicle told me that she was going to Girawar for paralysis treatment. I asked her why not PGI, that's better and not that far away. She said, that's of no use, we had already tried. This one is famous for the treatment of paralysis. Those days, I myself had some such symptoms left side. The way codes revolved around, what I remember about Girawar? A friend's husband village, though they don't live there. That friend and her husband name, sir name and this village name. Icing on the cake, disease name, paralysis?

Can disease be treated like that?

Maybe, may not be? But if diseases can be created like that then may be? 

I have heard and seen such creations in the surrounding in many other diseases cases also in last few years. Name any disease and you will hear such disease and treatment. Still, fact is most educated people prefer allopathy. 

In these creations most interesting is how diseases diagnosis turn one disease into another, with the political shifts? Or even little happenings or mishappenings? Like fisrt diagnosed kidney stone. Then gall bladder? In some cases, there was none but packet milk contamination? But what if that person (me) had gone for the treatment?  

In another case, almost same kind of diagnosis and mom had been treated for the gall bladder stone. But? What kind of happenings were those in the department and in that hospital? And even more important, specific types of cuts at specific places? 3-1? One near naval. Then look at the address and hospital name and doctors name there? Same way many other details.

Then cancer cases? Then other stone cases or paralytics cases in the surrounding. 

And this one? Parkinson? With D side move? Or sun and moon references?

For people who still could not understand. Check this one

 
For people who wanna read whole article, check the link
 
https://news.ufl.edu/2025/10/parkinsons-free-future/ 
 
and a free book advertisement on Parkinson from my side :)  

Wednesday, October 29, 2025

Modren Warfare Pros and Cons 10

 हमें लगता है की अब तो इलेक्शन बड़े शांत तरीके से हो जाते हैं? पहले की तरह लठ, गोली, बूथ लूटना नहीं होता? ऐसा ही? कुछ सालों पहले शायद ऐसी सी कोई पोस्ट भी लिखी थी मैंने? पर जब पता चला की इलेक्शन वो हैं ही नहीं, जो हम सोचते हैं। ये तो कुछ और ही तरह का जुआ है। पहले इंटरनेट या फ़ोन की इतनी सुविधा नहीं थी, तो लठ, गोली वैगरह ज्यादा दिखते थे। अब? अब राजनीती का ज्यादातर जुआ ऑनलाइन चलता है? तब दुनियाँ यूँ ग्लोबल नहीं थी, जैसे अब? की अभी यहाँ कुछ हुआ और सिर्फ खबर ही नहीं, बल्की, action, reaction या response भी उसी वक़्त, दुनियाँ के किसी और हिस्से में भी। 

Bio Chem Physio Psycho या Electrical युद्ध उस वक़्त भी होते थे। मगर, कहाँ क्या चल रहा है, उसकी उसी वक़्त खबर कम से कम आम आदमी को, कोडों के जरिए ऐसे नहीं होती थी जैसे अब? अब तो अभी कहाँ क्या पक रहा है या इनका या उनका अगला कदम क्या हो सकता है, उसकी खबर तक ऑनलाइन मिल जाती है। बढे चढ़े या बिगड़े रुप में शायद? हाँ, इस खबर के नुकसान भी काफी हैं। बहुत बार अगर खबर का माध्यम ही संदिग्ध हो, तो बहुत कुछ उल्टा-पुल्टा भी समझ आ सकता है। 

सोचो राजनीतिक पार्टियाँ आपको बिमारियों के बारे में बता रही हों? 

ऐसे?

 
इससे सीधी-सीधी शायद कोई पोस्ट नहीं हो सकती?

BJP का दिल्ली में DENGUE से क्या लेना देना है?

ऐसे ही जैसे, AAP का FOGGING से?

कैसे कोड हैं ये?

राजनीतिक पार्टियाँ बिमार हैं क्या, जो वो ऐसे बिमारी फैलाती हैं?  

शायद?   

या शायद बहुत कुछ ऐसा सा, सीधा-सीधा या उल्टा-सीधा भी उसी वक़्त जाने कहाँ-कहाँ और किस किस रुप में देखने सुनने को मिलता है?

आगे कोशिश करते हैं, ऐसा ही कुछ जानने की?

Modren Warfare Pros and Cons 9

आपको Heavy Vehicle नहीं चलाना है। कोई भी Heavy Machinery Operate नहीं करनी है। 

डॉक्टर पिंक ड्रिंक के साथ जाने क्या कुछ पूछ रही थी या इंस्ट्रक्शन दे रही थी। 

तो आपको बहुत गुस्सा आता है आजकल?

जी?

आपने मोबाइल फेंक दिया?

क्या? थोड़ा हैरानी से। मुझे इस कदर सर्विलांस पे क्यूँ रखा हुआ है? 

आपको ऐसा लगता है?

लगता है नहीं, सच है। मन में सोचते हुए, कल ही तो फ़ोन पटका था। कुछ एक को उड़ाना है, यूनिवर्सिटी में। सिर्फ फ़ोन से कहाँ काम चलना है। कुछ लोगों को देखकर ही जाने क्यों दिमाग फटता था उन दिनों। 

आप यूनिवर्सिटी से बाहर कहीं घुमने जा सकते हैं। आपके पास छुट्टी हैं। 

जी 

तब तक गुस्सा शायद थोड़ा शाँत हो जाएगा। 

थैंक यू कहकर मैं उठकर चल दी। खास मलिक शॉप से खरीदा हुआ एक 9000 का इंजैक्शन लगा हुआ था। वहीँ से लाने को बोला गया था, ये कहकर की हमारे पास है नहीं और उस शॉप के इलावा कहीं और मिलेगा नहीं।  

प्रोग्राम बना चाय ल।  चायल क्यों? पता नहीं। बनाया तो मैंने ही था? पता नहीं। यूँ लगता है, की उन दिनों की यादास्त थोड़ा कम थी। किसी घाट पे उतरी थी। मगर किस घाट पर? याद नहीं? शायद, अजीब सा नाम था? वहाँ किसी स्कूल के एक छोटे से क्वाटर? पर कौन थी ये लड़की? मैं तो इसे नहीं जानती थी। हाँ। नाम जरुर जाना-पहचाना था। और उसके पति का नाम, विजय। दिमाग थोड़ा कम जरुर चल रहा था, पर इतना तो चल गया था की कुछ गड़बड़ घौटाला है। और शायद एक ही दिन बाद मैंने कोई होटल बुक कर लिया था। मीडिया पर काफी कुछ चल रहा था। थोड़ा बहुत शायद समझ भी आ रहा था। कहीं कुछ था शायद, "बच गए"।बच गए? मगर किससे? षड्यंत्र से? किसी Hydra (2010) जैसी सी सामान्तर घड़ाई से? 

आते वक़्त टैक्सी वाला काफी लेट हो गया था आने में और काफी कुछ बोल रहा था, क्यों और कहाँ लेट हो गया? फिर कहीं किसी FB वाल पर पढ़ा शायद, की मैं भी वहीँ था? हैं? तुम वहाँ क्या कर रहे थे? डिफ़ेंस ने पकड़ा हुआ था? या नेताओं ने? 

उसके बाद घर आई तो रितु ने बताया की वहाँ का तो मुझे ऑफर दिया गया था, जॉब का। मगर मुझे सही नहीं लगा, अपना घर छोड़कर इतनी दूर जाना। 

रितु के जाने के बाद गुड़िया को जब उसके स्कूल से निकलवाकर, किसी और स्कूल में करवाने का षड्यंत्र चला, तो जाने क्यों मुझे हज़म नहीं हो रहा था। यूनिवर्सिटी तो थी जो थी। यहाँ आकर स्कूल ही जैसे कोई पहेली बन गए। Emulative Software का प्रयोग चल रहा हो जैसे कोई, आसपास के समाज पर? 

2018 की कहानी है ये। यूनिवर्सिटी द्वारा एक कोशिश, कांडों के कंट्रोल की, साइकोलॉजी डिपार्टमेंट की मदद से? और किसी अपनी ही तरह की सामान्तर घड़ाई की कोशिश थी शायद, जो सफल नहीं हुई? जाने क्यों या कहो की क्या कुछ देख सुनकर मैंने अपनी जगह बदल ली थी, शायद इसलिए?        

Tuesday, October 28, 2025

Modren Warfare Pros and Cons? Or?

 Social Tales of Social Engineering?

Or?

Views and Counterviews? 

Sometimes we confuse similar looking or sounding words?

Like? 

Solan and?

Solna?

एक HP में है और एक Stockholm।    

स्टॉकहॉम से जाने क्यों स्टॉकहॉम सिंड्रोम याद आता है?

क्या खास है?

जब कोई कहे ख़तरा, तो हमारा दिमाग ऐसे से शब्दों या जगहों को ज्यादा याद रखता है?    

कुछ-कुछ ऐसे जैसे PK?

अरे PK तो मूवी थी शायद कोई?

या सच में तू पीके है क्या? पी रखी है क्या?

ऐसे ही जैसे Pub या Bar?

पिछे Bar and Bench को पढ़के जाने क्यों ऐसा सा लगता था। 

ऐसे ही जैसे Public या Publica या Republic भी?  

कुछ भी जैसे?  

पीछे जाने कौन से Neural Networks पढ़कर लगा, की matrix फिर से देखनी है। उसमें Simulation जैसा कुछ है क्या? अभी एक ही फिर से देखी, उसमें तो कुछ खास लगा नहीं। Kids वाली मूवी है जैसे? इससे घातक तो पीछे सुना NDTV (?), नहीं, नहीं, Youtube घड़ रहा था? 

श्याम जी? 

मगर ये पीछे सुप्रीम कोर्ट ने कुछ एक यूटुबेरस से अपने घड़े फ्रॉड विडियो हटाने को क्यों बोला? ऐसा क्या हुआ था उस दिन? कोई हिस्ट्री गुल हुई थी? लैपटॉप की :)  

वापस श्याम जी पर आते हैं।  

सुना है, हमारे यहाँ दिया-बात लगती है उसकी। वो क्या बोलते हैं? भगवान हैं हमारे यहाँ? अब स्कूल वाले हैं या घर वाले? ये Next Gen Ducks से पूछकर बताना पड़ेगा :)

           

                                                       Image taken only for science communication purpose  

Or maybe political science, religious culture and mixed khichdi? 

ये इमेज तो फ्यूज़न लग रहा है? अलग-अलग वक़्त का?   

सोचो, इस सबका बिहार के इलेक्शन, duck या Sir List या किसी भी PK या Kismebar से क्या लेना-देना?  

ऐसे ही जैसे Sting या Appy fizz या Sprite जैसी सोडा ड्रिंक का?  

या शायद चाय का भी? तो अगली पोस्ट में आपको खास चाय की सैर करवाते हैं?   

Sunday, October 26, 2025

Modren Warfare, Pros and Cons 7

 आप कौन सी दुनियाँ में रहते हैं?  

वो दुनियाँ जो आपने बनाई है या वो दुनिया जो गुप्त सिस्टम ने आपके लिए बनाई है? आपका भूत उसी का घड़ा हुआ है। और आपका आज भी वही घड़ रहे हैं? संभव है क्या? या ऐसा कुछ हो रहा है?

एक उदाहारण आसपास से ही। कल आपको बहन के खिलाफ भड़काया जा रहा था की वो आपकी जमीन खा जाएगी? पता चला हो तो बताना की किसने खाई? या अभी भी कोशिशें जारी हैं? बची खुची को भी निपटाने की?  

कहीं, किसी के बारे में किसी को कहते हुए सुना, होणी है तू होणी। आजकल ये इंसान कैसे लोगों के आसपास रहता है? क्या सुनता या सोचता है? कहीं ऐसा तो नहीं, की होणों से घिरा हुआ है? और वही इसकी होणी रच रहे हैं? गुप्त-गुप्त खेल में गुप्त-गुप्त मार भयँकर होती हैं। जमीन के बाद, ये कहीं सारा सब एक जगह इकट्ठा कर, खुद इसे निपटाने के चक्कर में तो नहीं? जल्दी में अमीरी के चक्कर में, लोगबाग अक्सर सब गवाएँ मिलते हैं। 

पैसा पास हो तो पहला काम ये होना चाहिए की कैसे उससे अपना रोजगार शुरु किया जाए। ना की, ज़मीनी धंधे वालों के जालों में फँसकर, गोबर पाथ जगहों पर प्लॉटों के षड्यंत्रों में फँसकर। पर रोजगार जहाँ शुरु करना था, वो ज़मीन तो ? फँस गए षड्यंत्र कारियों के?  

Kidnapped by Police?

जगह? MDU, गेट नंबर?  

एटीएम? SBI?      

 तारिख? 26? 

महीना? 4 (April)

साल? 2021?

साढ़े तीन दिन के ड्रामे के बाद?

अरे?

ये ATM कहाँ गया?   

इस साढ़े तीन दिन के ड्रामे में क्या कुछ हुआ? ये केस स्टडी Memoir के रुप में amazon पर उपलभ्ध है। अरे आप तो बड़े अपने बने घूमते हैं और आपको मालूम ही नहीं, की क्या हुआ? क्यों हुआ? और कैसे हुआ? कौन-कौन थे, ये सब करने वाले? सबसे बड़ी बात ये ड्रामा घड़ने वाले स्क्रिप्ट राइटर कौन? ऐसे-ऐसे राजनीतिक ड्रामों की स्क्रीप्ट लिखी जाती हैं या सीधा डायरेक्ट की जाती हैं?  

आप शायद उनमें से हैं, जो बोलते या सोचते हैं की हरामज़ादी, जेल काट कै आ री सै यो। बिना काँड करे कौन जेल जाया करै? और भी बहुत से एडजेक्टिवेस होंगे बढ़िया-बढ़िया, इस हरामज़ादी के लिए? एक से बढ़कर एक, मस्त वाली हरयाणवी गाली? चलो यहाँ तक तो सही है। अब माहौल जैसा हो, हम उससे आगे कहाँ बोल या सोच पाते हैं?  

मगर क्या हो, अगर इसी केस की कहानी खुद आप और आपके बच्चे भी या तो भुगत चुके हों या भुगत रहे हों? या उनका कल उससे प्रभावित हो? इसीसे सम्बंधित कुछ समान्तर घड़ाईयाँ, आज भी आपकी या आपके बच्चों की ज़िंदगियों में घड़ी जा रही हों? आपका आसपास या बुजुर्ग तक इससे सम्बंधित बिमारियाँ या लड़ाई झगड़े झेल रहे हों? तो जानना जरुरी है इस कहानी को या नहीं? या ऐसी-ऐसी कुछ एक कहानियों को? केस स्टडीज़ को?

ये सुविधा हम जैसों को हासिल नहीं हुई। अगर हमें इतने सीधे-सीधे आगाह करने वाले या बचाने वाले होते, तो इतने सालों बाद भी जुआरियों के जाले यूँ ज़िंदगी से ना खेल पाते। ये वो केस स्टडीज़ हैं, जो आपको आपके अपने समाज का आईना दिखाती हैं। और बुरी वाली समान्तर घड़ाइयों से आगाह भी करती हैं। 

ऐसी-ऐसी केस स्टडीज़ को छिपाने वाली या पब्लिश ही ना होने देने वाली ताकतें, सरकार या विरोधी पार्टियाँ, आपसे अपनी चालें और घातें छिपाने की कोशिश करती हैं। क्यूँकि, सामाजिक समान्तर घड़ाईयाँ कहीं न कहीं ऐसी सी ही राजनीतिक घड़ाईयोँ का बढ़ा चढ़ा या बिगड़ा रुप होती हैं। और वो सालों साल, एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी घड़ी जाती रही हैं।    

मानव रोबॉटिक्स का एक चेहरा भी दिखाती और समझाती हैं ये केस स्टडीज़। कैसे? आगे की पोस्ट में जानने की कोशिश करते हैं। Paralysis to?  

Monday, October 20, 2025

Modern Warfare, Pros and Cons 6

संभानाओं का खेल


संभानाओं का खेल है राजनीती 

और जीवन भी। 

इसीलिए, दुनियाँ जहाँ का हिसाब-किताब 

डाटा पर आकर जैसे ठहर-सा जाता है 

इसीलिए,

दुनियाँ जहाँ की कुर्सियों की लड़ाई 

बाजार की ताकतों की लड़ाई

डाटा के इर्द-गिर्द मँडराती नज़र आती है। 

आप और आपके आसपास का सबकुछ 

आपके सिस्टम का डाटा है। 


यही डाटा और सिस्टम 

आपकी ज़िंदगी बनाता या बिगाड़ता है। 

राजनीती और टेक्नोलॉजी (बड़ी-बड़ी कंपनियाँ)

इसी डाटा पे खेलती हैं। 

इसी डाटा में हेरफेर कर 

इसे जहाँ तक हो सके 

अपने अनुसार ढालती हैं।  

AI और डाटा उन संभानाओं की पूर्ति का 

बड़ा ही डैडली गठजोड़ है। 

जिसमें भावनाएँ शून्य हो जाती हैं 

और इंसान, मात्र मशीन जैसे। 


मगर, डाटा से आगे 

हिसाब-किताब से आगे 

एक और जहाँ भी है 

जो इस डाटा को मात देता नजर आता है। 

गूढ़ पहेली-सा 

विश्वास, श्रद्धा पर टिका-सा नजर आता है 

जहाँ, रिश्ते-नाते टिके नजर आते हैं 

जहाँ, हिसाब-किताब फेल होते नजर आते हैं 

जहाँ, एक दूसरे के लिए लोगबाग 

ना जाने क्या कुछ त्याग करते नजर आते हैं। 


उन्हें ना राजनीती, न कुर्सियों या पदों का लालच  

और ना ही बाजार की रौनक डिगा पाती है   

संभानाओं का खेल तो वहाँ भी है 

मगर, बड़ा ही नपा-तुला सा होते हुए भी 

हिसाब-किताब के फॉर्मूलों को जैसे मात देता-सा। 


मानो कहता नज़र आता हो 

ठहर, कुछ देर तो और ठहर 

रुक, ज़रा-सा और रुक

कहीं कुछ भागा नहीं जा रहा 

कोई ट्रेन या प्लेन नहीं निकला जा रहा 

दुर्घटना से? देर भली। 


देख समझ तो भला, 

की आखिर तुझे परोसा क्या जा रहा है? 

कहीं ईधर-उधर करके सबको,

फिरसे, 

पुरे घर की सफाई का अभियान तो नहीं है?

जो बड़ी मुश्किल से जैसे, थोड़ा बहुत थमा-सा है।   


क्यूँकि,

राजनीती और टेक्नोलॉजी के हेरफेर का सँसार 

भावनाओं पर और भी भयँकर तरीके के फॉर्मूले गढ़ता है 

गुप्त तंत्र ही कहीं के भी 

भगवान, भगवानी, देवी, देवता, शुभ, अशुभ 

त्यौहार और मुहूर्त ही नहीं, 

बल्की, श्राद्ध और मर्त लोगों को जलाने 

या दबाने जैसे रीती-रिवाज़ तक घडता है। 

और अपनी-अपनी राजनीती की जरुरतों के 

हिसाब किताब-सा 

वक़्त, वक़्त पर उनमें हेरफेर भी करता रहता है।   

Modern Warfare, Pros and Cons 5

 दुनिया, अजब-गजब 

पीछे कुछ सालों से मैं त्यौहार नहीं मनाती। इसी आस में की अपने त्यौहार, अपने घर मनेगें। किसी पड़दादाओं के खँडहर में तो बिलकुल नहीं। सही बोला जाए तो, यहाँ वो फीलिंग ही नहीं आती। हाँ, आसपास के त्योहारों के रंग-रुप जरुर देखती हूँ, उस नज़र से, जो पिछले कुछ सालों में विकसित हुई है। जैसे? 

मीडिया कल्चर के रंग, त्योहारों के संग  

नाली पे दिवाली? दिवाली घर के बाहर बिठा दी और दिवाला घर के अंदर? वो भी सुबह-सुबह? 

एक हरा दिया, एक-आध जामिनि और बाकी? वही अपने देसी रंग-रुप वाले? पहली पैड़ी पे ये, दूसरी पे ये, तीसरी पे ये?    

यहाँ, यहाँ, यहाँ? कुछ खास नहीं बदला है। हाँ, कुछ लोगबाग़ नए हैं। कुछ पुराने आए-गए हुए। किन्हीं घरों में बहुएँ, तो, कहीं बुजुर्ग। और किन्हीं के थोड़े और ज्यादा बेहाल हैं। 

कहीं बुजुर्गों के बेहाल हैं। मगर, वो कह रहे हैं की पहले से बेहतर हैं। मतलब? पहले ऐसे क्या हाल होंगे? ऐसे घरों को देखकर तो शायद यही समझ आता है, "होलो, साँड़ पैदा कर कै खुश? पर चिँता ना करो, सांडा कै आग्य भी सांड हैं।" कहाँ-कहाँ सुना है ये? या शायद कुछ की माने तो, उनके घर के काम रुके हुए ही बुजुर्गों के आशीर्वाद के बिना हैं?   

कुछ लोग गाँव वाले घर पर ऐसे टहलने आते हैं, जैसे माँ-बाप को सुनाने ही आते हों? जैसे, पता नहीं उन्होंने उनका क्या खा लिया हो? चलो फिर भी वो आते तो हैं। कुछ माँ-बाप तो इतने से में भी खुश हो जाते हैं। और ब्याज से ज्यादा मूल को पसंद करते हैं। बेटे बहुओं की बजाय, पोते पोतियों या दोहते दोहतियों को। और कुछ के प्रवचन बुजुर्गों से सुनकर तो ऐसे लगता है, जैसे जाने किस प्रजाती के जानवर पैदा किए हुए हैं इन्होंने? कुछ आते ही नहीं, माँ-बाप का सबकुछ लूट-खसौटकर। ये सबसे लायक प्रजाति बताए। ये ईधर की कहानियाँ बताई। उधर की भी कुछ तो होंगी ही? कुछ भी हों। मगर माँ-बाप को इस उम्र में इस हाल में यूँ अकेला छोड़ना? सभ्य इंसान तो नहीं करेंगे शायद?  

तो कैसी रही दिवाली आपकी? या आपके यहाँ दीपावली मनती है? शब्दों का बस थोड़ा-सा ही हेरफेर, क्या कुछ कहता है? ऐसे ही जैसे रंगो का या डिज़ाइनस का। कभी नहीं सोचा ना? सुना है ये जाल भी मानव रोबॉटिक्स का एक हिस्सा है। बहुत बड़ा हिस्सा। 

सोचके देखो, की आप जो शब्द चुनते हैं अपनी अभिव्यक्ति के लिए, वही क्यों चुनते हैं? उसके पीछे भी कहीं कोई राजनीती तो नहीं? थोड़ा ज्यादा लग रहा है ना? शुरु-शुरु में मुझे भी ऐसे ही लगता है, अब थोड़ा समझने की कोशिश करती हूँ, इस शब्दों के हेरफेर के कल्चर को। मीडिया कल्चर को। आगे किसी पोस्ट में आएँगे शब्दों, रंगो या डिज़ाइनस के जाल पर भी। 

उम्मीद की आपकी दिवाली या दीपावली अच्छी ही रही होगी। 

Saturday, October 18, 2025

Modern Warfare, Pros and Cons 4

 Human Robotics 

वो कौन से कारक या कारण हैं, जो आपको रोबॉट बनाते हैं? कैसे पता चले? 

Experiential Learning  (अनुभव से समझा जाना गया, ज्ञान और विज्ञान) 

काफी कुछ Campus Crime Series से समझ आने लगा था। उसपे रोज-रोज के यहाँ-वहाँ के नुक्कड़-नौटंकियाँ देखकर या भुगतकर। गाँव ने तो जैसे आँखें ही नहीं खोली, बल्की, मानो दिमाग ही उधेड़ डाला। कौराना दौर तो ऐसा था जैसे आप फटना चाह रहे हों और बताना चाह रहे हों, जो मौतें हो रही थी, वो मौतें थी ही नहीं। लोगों को गुनहगारों के बारे में बताना चाह रहे हों, मगर खुलकर बोलने, लिखने पर पहरे हों, सत्ता के। So called disaster management वालों ने जैसे मुँह पर सील लगाने का काम किया हो। ऐसा करोगे तो? और खून करेंगे।   

आपने एक घर को ही नहीं, बल्की, आसपास को ही ऐसे उथल-पुथल होते देखा था, जैसे वो खुद भी नहीं देख और समझ पा रहे थे। शायद, केस स्टडीज़ करते-करते कुछ मैं एक आम आदमी से ज्यादा समझने लगी थी। और कुछ मुझे ज्यादा बताया और समझाया जा रहा था। कहीं हकीकत के, तो कहीं फेक विडियो या आर्टिकल्स द्वारा। यहाँ वहाँ, जैसे हकीकत पर पर्दा डालने की कोशिशें। तो कहीं और वक़्त लेने की खवाहिशें, गुनाहों को और धुँधलाने के लिए। ये सब करने वालों को बचाने के लिए। बाहर निकलने की  कोशिशों पर रुकावटें, धमकियाँ, डरावे, नौटंकियॉँ। सबकुछ छीन झपटकर, कुत्ते के जैसे टुकड़े डालना और उस पर अहसान भी लेने की कोशिशें। 

शुक्र है की बिहार, UP, ओडिशा जैसे राज्यों से नहीं हूँ। नहीं तो इतनी बंदिशों और रुकावटों के बाद तो भूख प्यास से ही मर चुके होते। हालाँकि, करने वालों ने ऐसा हाल बनाने की कोशिशें बहुत की। ये मैंने क्यों लिखा की शुक्र है, बिहार, UP, ओडिशा जैसे राज्यों से नहीं हूँ। हूँ क्या? आप हैं? मगर दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, बंगलौर या पटना से भी नहीं हूँ। आप हैं? 

Human Robotics  में पहला अटैक पहचान भर्मित करने की कोशिशें ही होता है। जैसे, जैसे आप उसके जाल में उलझते जाते हैं, वैसे, वैसे मानव रोबॉट बनते जाते हैं और दूर, बहुत दूर बैठे लोग भी आपको और आपकी ज़िंदगी को रिमोट कंट्रोल करने लग जाते हैं। और ऐसे ही कितने ही प्रश्न, रोज-रोज यहाँ-वहाँ लोगों की ज़िंदगियों में धुँधलाने की कोशिशें करती हैं, ये राजनीतिक पार्टियाँ, बड़ी-बड़ी कंपनियाँ और मीडिया। आप कहाँ से हैं, ये तो बहुत दूर का प्र्शन है। 

उससे पहले तो वो आपका नाम क्या है? 

उसके शब्द क्या हैं? 

आपकी जन्म तिथि क्या है?

आपके माँ बाप कौन हैं?

बहन, भाई कौन हैं?

चाचा, ताऊ, दादा, दादी, बुआ, मामा वैगरह या इनके बच्चे कौन हैं? क्या लगते हैं वो आपके? ये तक धुँधलाने की कोशिशें करती हैं ये राजनीतिक पार्टियाँ और बड़ी बड़ी कंपनियों के गठजोड़ या उनकी पढ़ी लिखी टीमें। और वो सब वो कहीं अद्रश्य रुप से या कहीं कहीं खुद आपसे नौटंकियाँ तक करवाकर करते हैं। इसे बोलते हैं, हकीकत को मिटाने की कोशिशें। और उसपर अपने घड़े किस्से कहानियों के जाले पूरने की कोशिशें। जहाँ जहाँ ये सफल होता है, वहाँ वहाँ रिश्तों के तोड़मरोड़, आपस के झगड़े, बिमारियाँ और मौतें तक होने लगती हैं। 

ऑफिस में कहीं शास्त्री सर, और कहीं PK जयवाल, CS पुंडीर,  श्याम मिश्रा, विनीता शुक्ला, पुष्पा मैम, मिनाक्षी विनीता हुडा, BK बहरा, विकास हुडा या विकास ढुल, सोनिया, वीरभान, राहुल ऋषि, युद्धवीर या फिर Batchmates या फ्रेंड्स या स्टूडेंट्स के नामों वाले ड्रामों के हेरफेर थे तो 

गाँव आते ही ये दादा, वो दादा, ये दादी, वो दादी, ये ताई, वो ताई, ये चाची, वो चाची, ये बुआ, वो बुआ, ये फूफा, वो फूफा, ये बहन, वो बहन, ये भाई, वो भाई, ये भतीजा या भतीजी और वो भतीजा या भतीजी या भांजा या भांजी के नामों वाले ड्रामे शुरु हो गए। तुम्हारे साथ ये हुआ, तो उसके साथ वो हुआ। उसके साथ वो हुआ, तो तुम्हारे साथ ये हुआ, के किस्से कहानी ही जैसे ख़त्म होने का नाम ना ले रहे हों। हद तो ये, की कोई लड़की ऐसे बोले, जैसे, उसकी चाची या ताई या कोई बहन, उसकी चाची, ताई या बहन ना होकर, मानो सास या दुरानी, जेठानी या नन्द हों या कोई सौतन। ऐसे ही पुरुषों के केसों में। जैसे आप किसी पागलखाने में आ टपके हों। 

लोगों के दिमागों में इन गुप्त राजनीतिक या ख़ुफ़िया तंत्र की ईधर या उधर की सुरँगों द्वारा, इतना गड़बड़ झाला कर देना ही झगड़ों, विवादों, बिमारियों और मौतों तक को बता रहे हों जैसे। ये सब घड़कर, वो आपसे ना सिर्फ आपकी पहचान धूमिल करते हैं, बल्की, आपके दिमागों पर अपनी ही तरह के जाले फैला कर, उनको दूर बैठे रिमोट कंट्रोल भी करते हैं। ऐसा करके वो आपकी ज़िंदगी का हर पहलू अपने अनुसार चलाते हैं। 

इतना सब संभव कैसे है? आम लोगों तक का डाटा इकट्ठा कर, उनपे अपनी ही तरह की एल्गोरिथ्म्स और तरह-तरह के फॉर्मूले लगा कर। सोचो, कंपनियाँ या ख़ुफ़िया तंत्र करोड़ों, अरबों, सिर्फ लोगों को रिकॉर्ड करने या डाटा इक्कठ्ठा करने में क्यों लगाएँगे? वो भी आम लोगों को? इससे उन्हें क्या फायदा? काफी कुछ आपकी अपनी IDs के साथ जोड़कर और उन्हें सिस्टम से लिंक करके ऑटोमेशन पे रख दिया जाता है। ये सब होता तो लोगों की भलाई के नाम पर है। मगर, इससे कितना आम लोगों का भला या बुरा होता है, ये प्र्शन अहम है। उसके साथ-साथ सेमीऑटोमैटिक और enforcement का काम, ये पार्टियों की शाखाएँ और गुप्त सुरँगे करती हैं।   

कितना और कैसे-कैसे बचा जा सकता है, इस सबके दुस्प्रभाव से? जितना ज्यादा इस सबके बारे में जानकारी होगी, उतना ही ज्यादा आप सचेत होंगे। और उतना ही ज्यादा इन सबके दुस्प्रभावों से बच पाएँगे। तो कोशिश करते हैं आगे पोस्ट्स में इस गुप्त सिस्टम या तंत्र और सिर्फ रोबॉटिक्स नहीं, बल्की, मानव रोबॉटिक्स के बारे में जानने समझने की।                  

Modern Warfare, Pros and Cons 3

षड्यंत्र पे षड्यंत्र (Plot after plot)


Handover to Google Takeover?

DD O DD to Fix it?

They tried hard as hard as they could, but did that happen especially the way they wanted?

Plot after plot

कितने षड्यंत्र? और कितने किस्से और कितनी कहानियाँ?

इन्होने एक प्लॉट यहाँ धरा, तो उन्होंने एक प्लॉट वहाँ। मतलब, सबका एक ही, सामने वाले को ख़त्म करना।   


कहानी हैंडओवर से ही शुरु करें? 

उन दिनों ऑफिस की तरफ से हैंडओवर की इमेल्स का दौर चल रहा था। मगर, वो आजतक नहीं हुआ। जैसे वो चाहते थे, कम से कम वैसे तो नहीं हुआ। मेरी तरफ से तो बिलकुल ही नहीं हुआ। मेरा सामान आजतक उसी ऑफिस में पड़ा है। हैंडओवर का किस्सा शुरु होने के बाद, मैं उस ऑफिस ही नहीं गई। हालाँकि, सुनने पढ़ने में आया, की वीर "भान"  जैसे उपद्रवी तत्वोँ ने वो ऑफिस और उसका ज्यादातर सामान अपने नाम कर लिया। इंसान अपना कमाने की बजाय, दूसरों का हड़पने के लिए क्या कुछ तो नहीं करता? मगर ऑफिस तो छोड़िए, क्या उसका अपना घर तक उसके साथ जाता है? बस, इंसान इतना भर समझ ले, तो दूसरों का हड़पने और हडपाने के युद्ध ही ख़त्म हो जाएँ।   

घर आने के बाद, मेरे लिए उस ऑफिस का जैसे कोई महत्व ही नहीं रह गया था। मैं एक अलग ही दुनियाँ में जी रही थी। वो ढेर सारी फाइल्स जो पिछले कुछ सालों में इक्कठी करली थी, उन्हें पढ़ने, समझने और उनकी केस स्टडीज़ लिखने में। ये वो दिन थे, जब भाभी का स्कूल का प्रोग्राम बन रहा था। उन दिनों पड़ोस वाले वो दादी ज़िंदा थे, जो बाद में कैंसर (?) की भेंट चढ़े। और आसपास घरों में कुछ लड़कियाँ भी ससुराल से आकर घर बैठी हुई थी। दादी की कुछ बातें वक़्त के उतार-चढ़ाओं के साथ-साथ थोड़ी और रहस्यमयी सी हो गई जैसे। उनको समझने में कहीं यहाँ वहाँ मीडिया से सहायता मिली, तो कहीं उसके बाद चले घटनाक्रमों से। उनमें से एक रहा ज़मीनों के हेरफेर। घर, प्लॉट और खेत या स्कूल के साथ वाली ज़मीन का मतलब। या कहीं की भी ज़मीन, चाहे वो फिर घर हो या प्लॉट या कोई सँस्थान या खेत खलिहान, उसके मालिक और उसके आसपास से घिरे पड़ोस के सिस्टम और इकोसिस्टम से बनी है। और वो इकोसिस्टम, उस जगह पर तरक़्क़ी या नुकसान को बनाता और बताता है। जहाँ आप रह रहे हैं या काम कर रहे हैं, वही आपका आज है और जो कुछ काम कर रहे हैं, उसी से आपका कल निर्धारित होना है। 

दादी की कही कुछ बातें जिन्हें शायद अद्रश्य तरीके से कुछ राजनीतिक पार्टियाँ ही पहुंचा रही थी। या कुछ उनके अपने साथ हुए या आसपास के घटनाक्रम थे। जैसे भिवानी और 35 लाख का लेनदेन या हेराफेरी? ये सबका खा गया? और ऐसी सी ही कुछ बातें। हालाँकि, इनमें काफी कुछ से मैं आजतक सहमत नहीं हूँ। जैसा पहले भी लिखती आई हूँ, की हर केस अलग है और हर केस के पात्र और कहानियाँ ऊपरी सतह से आगे कुछ और ही दिखाते या बताते हैं।   

35 लाख से 40 

40 से 50 

50 से 60 

60 से 70 

70 से करोड़, डेढ़ करोड़, 2 करोड़ और जैसे कोई हिसाब किताब ही नहीं। 

अलग-अलग राजनीतिक पार्टियाँ और अलग-अलग हिसाब-किताब। कुछ पीछे की तरफ भी जाती हैं, जैसे 10 या 20 या 12 । सबके अपने-अपने कोढ़ और अपनी ही तरह की गोटियाँ। निर्भर करता है, की किसको क्या फायदेमंद है। 

ये सबका खा गया, की अलग ही किस्म की कहानी है। कुछ लोगों ने इसे 2005 के लड़कियों के ज़मीनी अधिकार से जोड़ा और मुझे पढ़ाना शुरु किया, की अपना हिस्सा ले ले। तेरे पास और कोई रस्ता नहीं है। या भारत छोड़ दे। ये लोग कौन थे? या कहना चाहिए की हैं? नहीं, शायद अब अपनी उस जुबान के साथ नहीं हैं? क्यूँकि, तब से अब तक, प्लॉट पे प्लॉट और प्लॉट पे प्लॉट कई तरह के धरे जा चुके। इधर वालों द्वारा भी और उधर वालों द्वारा भी। क्यूँकि, मैंने ऐसा करने से मना कर दिया। और हर प्लॉट ने कुछ आदमी खाए हैं, उनके अपने घर में? ऐसा ही? या कहीं कुछ गलत समझ आया मुझे? जहाँ खाए नहीं हैं, वहाँ बिमारियाँ तो जरुर दे दी हैं। और उन प्लॉटिंग के साथ-साथ, वो अलग-अलग स्टेज पर चल रही हैं?

सबका खा गया, की कहानी में वो बता रहे थे की जबसे इसने शादी की है (2005), ये दोनों बहन भाई को लूट रहा है। वहीं से तुम लोगों की ज़िंदगी में रुकावट के लिए खेद है, घड दिया गया है। मुझे लगा, की कितना भड़का सकते हैं ये लोग? एक बहन को अपने ही छोटे भाई के खिलाफ? और अभी तक वो भडकाव चल ही रहा है। एक तरफ इधर भाई के खिलाफ, तो दूसरी तरफ उधर इन दो बहन भाई के खिलाफ। ईधर-उधर की प्लॉटिंग ने इसे थोड़ा और संगीन कर दिया है। 

जब मैं घर आई, तो सुनील दादा जी के कमरे में रहता था और उन्हीं वाला बाथरुम प्रयोग करता था। ढेर सारा पीता था और इसके साथ उसके पियक्कड़ दोस्तों का जमावड़ा रहता था। तो बहन बेटियों या भाभी को दिक्कत तो होगी। यही सब देखकर मैंने कहना शुरु कर दिया, इसका कमरा खेत में बना दो या प्लॉट में। बिमारी थोड़ा दूर रहेगा तो रोज रोज का सिर दर्द भी कम होगा। और रितु के रहते ही, उसका वहाँ आना जाना बँध हो गया। अब उसकी अपनी सिर छुपाने लायक अलग जगह थी। मगर यहाँ दिक्कत और बढ़ गई। अब आलतू-फालतू लोगों के आने जाने पर कोई अँकुश ही ना रहा। माँ या बहन बेटी को उसने वहाँ घुसने पर ही पाबंदी लगा दी। उसने? ये जानना अहम रहा, की किसने? यहीं से शुरु हुआ, अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों की अद्रश्य सुरँगों को जानना।

कुछ एक ऐसे तत्वों को बोला गया की आप यहाँ ना आया करें। मगर, उन्होंने जैसे ठान लिया लो, की ऐसा तो खुद आपके साथ होने वाला है।  मैं वहाँ घूमने जाती थी, अब इन लोगों ने मेरा यहाँ घूमना ही बँध करवा दिया। पहले खेत जाती थी घुमने, मगर मेरी गाडी हुंडई द्वारा शातिर तरीके से छीनने के बाद, अब गाडी जिन भले लोगों ने दिलवाई थी, पता चला उन्होंने ही छिनवा भी दी। हालाँकि, ये सब करते तो माँ और भाई ही दिख रहे थे। फिर ऐसे कैसे? 

जब माँ बाप या भाई बहन या कोई भी रिस्तेदार, अपने बच्चों या भाई बहन या अपनों से बात करने की बजाय, इन सुरँगों वालों से बात करते हैं, तो वहाँ कहानियाँ ऐसी ही बनती हैं। वैसे नहीं बनती, जैसे आप चाहते हैं। ऐसे लोग अपने लिए या अपनों के लिए काम करने की बजाय, इन राजनीतिक पार्टी वालों के काम बनाते हैं। उनके अद्रश्य चक्रव्यूहों में फंस जाते हैं। खुद और अपनों तक को लुटा बैठते हैं।  

फोनी ताकतें और in-silico कंट्रोल (राजनीतिक पार्टियों की ऑनलाइन सुरँगे) 

अपनों के साथ बातचीत ही ख़त्म और बाहर वालों से ज्यादा बातचीत (राजनीतिक पार्टियों का सीधा-सीधा कंट्रोल) 

यहाँ से मैं आपको मानव रोबॉटिक्स की सैर पर लेकर चलूँगी। एक ऐसा जहाँ, जहाँ हममें से बहुतों को लगता है की हमारी ज़िंदगी में जो कुछ हो रहा है, वो हम ही कर रहे हैं। हक़ीक़त, इसके बिलकुल विपरीत भी हो सकती है। आपका और हमारा ये जहाँ, हमारी ज़िंदगियों का हर पहलू तक, गुप्त तंत्र की जकड़ में है। जिसके आका राजनीतिक पार्टियाँ और बड़ी-बड़ी कंपनियाँ हैं। आप जितने ज्यादा अंजान और गरीब हैं, उतना ही ज्यादा इस तंत्र की जकड़ में भी। जितना ज्यादा आपके पास इस सबकी जानकारी और सँसाधन होंगे, उतना ही इनसे मुक्ती के रस्ते भी। 

मानव रोबॉटिक्स पर आगे पोस्ट्स में आपको काफी कुछ पढ़ने को मिलेगा।   

Thursday, October 16, 2025

Online Frauds

  yahoo!?

and spams?

और spam में कभी IG मिलेंगे और कभी?

Commissioner?


कमिशनर साहब, spam के हवाले से हवाला माँग रहे हैं?
गलत बात। 

वैसे ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी इमेल्स आती ही रहती हैं, जाने कब-कब खास मौकों पर? कभी लोकल सी लगने वाली और कभी इंटरनेशनल। ऐसे-ऐसे लोगों के पास कितना खाली-पिली वक़्त होता होगा? कुछ भी बनकर बैठ जाते हैं? डर गई साहब मैं तो :( या :)

Fight on Your Ancestral Property by Political Parties? Why?

क्या आपकी दादालाही ज़मीन पर राजनीतिक पार्टियों का कोई अधिकार है? क्या वो आपकी जानकारी के बिना आपको ऐसे किसी युद्ध में धकेले हुए हैं? कब से और क्यों? क्या उस अद्श्य युद्ध की वजह से आपके लोगों को भी खा रहे हैं? या आप लोगों की ज़िंदगियाँ हराम कर रहे हैं? मगर कैसे? क्या आपकी अपनी ज़िंदगी भी राजनीतिक पार्टियों की गुलाम है? आपके ना चाहते हुए या विरोध के बावजूद?        

अगर साल, डेढ़ साल के अंदर ही, किसी संदिघ्ध मौत के बाद, जहाँ वो खुद एक स्कूल बनाने वाली थी, अगर कोई पहले से वहाँ स्कूल उस ज़मीन को हड़पता है, बचे-खुचे लोगों से, बहला फुसलाकर या लालच या किसी भी तरह का डर दिखाकर या तरह-तरह के प्रेशर बनाकर, तो उसे क्या समझा जाए? वो भी उस बहन के विरोध के बावजूद। उसपर अपने स्कूल का हिसाब-किताब तक देने से आना-कानी करता है, क्यों? ऐसा क्या छिपाया जा रहा है? 

इन प्रेशर में और इस सबको यहाँ तक पहुँचाने में एक बहुत बड़ा प्रेशर पॉइंट MDU है, जो चार साल Resignation के बावजूद, मेरी सेविंग पर बैठे हुए हैं। अगर सही में देखा जाए, तो ये सब किया धरा ही उनका है।    

लड़कियों के अधिकार दादालाही सम्पति (Ancestral Land) पर? ऐसे हाल में तो और ज्यादा जरुरी हो गया है, इस फाइल को उठाना। आप क्या कहते हैं? वैसे भी जब से घर आई हूँ, मेरे पास ना रहने लायक घर है। जिस खंडहर में मुझे धकेल दिया गया है, वहाँ ना पानी, ना बाथरुम और ना ही बिजली। बस ऐसे ही कोई तार लटक रहा है जैसे। मुझे समझ नहीं आता, की माँ यहाँ कैसे रहती थी? तो जिस इंसान ने अपनी सारी ज़िंदगी ऐसे हालातों में गुजार दी हो, वो कहाँ से सोचेँगे की पानी, बाथरुम या बिजली जैसी जरुरतें अहम होती हैं? ऐसा नहीं है, की भाई के पास बहुत है। हालाँकि, कहने वालों ने ऐसा कहकर बहुत भड़काने की कोशिशें की। इतना कम होते हुए भी उसने जो कुछ इकठ्ठा किया है, हाँ वो जरुर अहमियत रखता है। कैसे? हालाँकि, भाई का जो घर है, दिक्कत उसमें भी बहुत हैं, उस पर कोई और पोस्ट की राजनीतिक पार्टियाँ आपके घरों में बिमारियाँ कैसे परोसती हैं। और आपको खबर तक नहीं चलती की वो ऐसा कर रहे हैं? यही गुप्त तंत्र का कमाल है, की वो अदृश्य होते हुए आपके तकरीबन सब फसैले खुद लेता है। मगर, वो सब करते हुए तो आप दिखते हैं। मतलब, गोटियाँ भर उनकी।             

कहीं किसी विडियो में Ancestral प्रॉपर्टी पर जानकारी हो, तो जरुर बताएँ प्लीज। और किसी वकील की बजाय ऐसा कोई केस, अगर किसी को खुद ही लड़ना पड़े, तो क्या कुछ करना पड़ता है? Procedure Please? जाने क्यों लग रहा है, की वो ऑनलाइन वाले कोर्ट तो सो चुके हैं? हे कोर्ट्स, आप सो चुके हैं? जाग रहे हों तो, ईधर भी देख-सुन लो। अब जरुरी नहीं की आपके हर फैसले को मैं या मेरे जैसा कोई आम इंसान सही ही कहे। आखिर उसमें भी थोड़ी बहुत सोचने समझने की क्षमता तो होगी? अब बोलना भी शायद आप लोगों से ही सीखा है, तो इतना तो भुगतना पड़ेगा?       

एक छोटा सा किसान, जो 2-4 किले में खेती करके अपना गुजारा कर रहा हो, वो भी ऐसी परिस्तिथियों में, जहाँ बीवी किसी बिमारी की भेंट चढ़ चुकी हो। वो जो खुद एक टीचर थी, किसी प्राइवेट स्कूल में और घर को चलाने में सहायक भी। अब ये भेंट वैसे ही है, जैसे कोरोना के दौरान कितनी ही और बिमारियों से लोगों का दुनिया को अलविदा कह जाना। जो बहुत से प्रश्न छोड़ता है, ऐसे-ऐसे खुँखार हॉस्पिटल्स पर भी और कुछ हद तक उनके डॉक्टरों पर भी। ये स्कूल के साथ वाली ज़मीन सिर्फ आधा किला नहीं था, दो  भाइयों के नाम, बल्की, इस घर की लाइफलाइन थी। सबसे बड़ी बात इसकी लोकेशन, गाँव के बिलकुल पास होना। दूसरी, मीठा पानी, जो इस गाँव में कहीं-कहीं है। जहाँ कहीं यहाँ ये कॉम्बिनेशन है, वहाँ जमीने बिकाऊ नहीं होती। भूल जाओ की उनके दाम क्या हैं। उस पर राजनीतिक पार्टियों का इस पर युद्ध। क्यों? ऐसा क्या ख़ास है इसमें? राजनीतिक पार्टियों के लिए ज़मीन ही क्या, हर इंसान, हर जीव जैसे उनके जुए की गोटी भर हैं। फिर क्या सरकारी और क्या प्राइवेट? जिसकी जितनी ज्यादा चल जाए, वही अपने नाम कर लेते हैं, कोढ़ ही कोढों में। और भोले आम लोग सोचते हैं, की ये सब वो खुद कर रहे हैं? उन्हें नहीं मालूम मानव रोबॉटिक्स कहाँ तक पहुँच चुकी है। वो रिमोट कंट्रोल की तरह दूर, बहुत दूर बैठे आपको, आपके परिवार को और ज़िंदगी के हर पहलू को कंट्रोल कर रहे हैं।                  

तो ऐसे स्कूलों, हॉस्पिटलों या संस्थाओँ पर लगामी पर भी कुछ बात कर ली जाए? क्या कहते हैं मीडिया वाले विद्वान? तो आगे किसी पोस्ट का हिस्सा आप ही होने वाले हैं, जो इस विषय पर ज्यादा सही जानकारी या खबर चलाएँगे?  

RTI Or Mandatory Information Disclosure for any Trust or Society 2

 सोचा याद दिलवा दूँ, कहीं खूनी स्कूल वाले भूल तो नहीं गए?  

RTI Or Mandatory Information Disclosure for any Trust or Society 1

Dear Concerned authority,

Director, Principal, Manager or Whoever

Arya Senior Secondary School, Madina, Rohtak


You are requested to provide the following details as per RTI 


What is the name and registration number of the trust or society of Arya Sr. Secondary School?

In which year, it was founded?

Who are the members of this trust or society?

What are the rules and regulations governing this trust? Please provide a copy of all above.

How much property this trust has till now on different members' names?  Give a chronology of the assets obtained over the years. It can be in the form of land purchase or building construction or lab or library formation or any vehicle purchased or any other such item.

Give a list of all sources of income of this trust.

How many students or teachers or other supportive staff, schools belonging to this trust or society have?

What is the fee structure or any other income resources of this trust?

What is the salary of teachers and other supportive staff on paper and in reality in your school/s?

What percentage or bonus, dearness allowances etc. teachers and other staff members get from the additional income?

What kind of updation or refresher courses, your school provide to teachers and other staff? 

What is the time line, for teachers or staff updation or refresher courses?

How frequently have your teachers or staff members changed your school? What was the duration or reasons for their leaving your school?

Did any teacher, staff or student have any complaints against your school?

What is the criteria of conflict resolution in your school?

Do you listen to the concerned person, if there is any genuine problem or get rid off, because your management feels that person has no power or resources or even knowledge to challenge your school's wrongdoings?

Do you have any complaints regarding encroachment or wrongly taken over any land or property? If yes, what kind of resolution mechanism does your trust provide for that? 

In the first place, why such a complaint is there if any, as you are registered a trust or society for the benefit of society, not to exploit vulnerable people. And why should not your registration be cancelled by the concerned authority? 

One such verbal complaint was done by me, your younger cousin, Vijay Dangi and you said that you will provide the details of the bank account of that purchase. It did not happen till today. I had to take this route after much wait. You are requested again not just to provide the details of Sunil’s property along with your school but Ajay property also and any such property purchased by any member of this school’s trust or society.


You are requested to provide the following information in the form of print and soft copy via the same email from which you got it about Arya Senior Secondary School, Madina and related trust or society under Right to Information Act (RTI). 


In case of print, please stamp and sign it properly on each and every page, along with date and page number. Whatever charges will be for print copies will be given in cash (bill mandatory). In case, you feel there would be charges even for soft copy via email, then please add them also.


Dr. Vijay Dangi

Mobile 9 ......... 

Wednesday, October 15, 2025

Modren Warfare, Pros and Cons 2

 Enforced Version

जो आप बोलना चाह रहे हैं, आपको वो ना बोलने दिया जाए। जो आप लिखना चाह रहे हों, आपको वो ना लिखने दिया जाए। जो आप करना चाह रहे हों आपको वो सब ना करने दिया, संवैधानिक हदों में होते हुए। संविधान जिसका आपको अधिकार देता है। 

रोकता कौन है?

तरह तरह के जुर्म करने वाले। 

कौन हैं ये जुर्म करने वाले? 

हमारी अपनी सरकार? राजनीतिक पार्टियाँ? या उनके गुंडे?   

जैसे पीछे वाली पोस्ट ही। क्या दिख रहा है आपको उसमें?

मुझे जो दिख रहा है, वो ये है 

पता नहीं ये तीन डॉट क्या हैं यहाँ? 
ये सब करने वाले कलाकारों को ज्यादा पता होगा? मैंने तो कुछ और ही लिखा था।  

ऐसे ही जैसे, जो काँड इन गुंडों ने किए हुए हैं, उनको यहाँ वहाँ मिटाने की कोशिशें। जैसे Campus Crime Series की कुछ एक पोस्ट मैंने काफी वक़्त बाद पढ़ी और पता चला, अरे, ये गुंडों ने क्या का क्या बना दिया? मैंने ऐसा तो नहीं लिखा।  
सोचो जहाँ ऑनलाइन जहाँ के ये हाल हैं, वहाँ ऑफलाइन क्या कुछ होता होगा? और ये सब ऐसा भी नहीं है की सिर्फ मेरे साथ ही ऐसा हो। जहाँ कहीं इन लोगों की पार पड़ती है, वहीं ये ऐसा ही करते हैं। जैसे दूसरों के मुँह में अपने शब्द डालने की कोशिश करना। जैसे दूसरे इंसान का खाना, पीना, पढ़ना, सुनना, देखना, पहनना, किसी के साथ होना या किसी से अलग, सब इस अनोखी दुनियाँ के अधीन है। ज्यादातर को ये सब होता संभव ही नहीं लग रहा होगा। क्यूँकि, ज्यादातर को इस दुनियाँ की खबर ही नहीं। फिर ये वाली गुप्त दुनियाँ काम कैसे करती है, उसके बारे में जानना तो बहुत आगे की कहानी है। जिस दिन वो सब समझ आना शुरु हो जाएगा, उस दिन आप खुद किए गए या कहे गए, खुद की पसंद या नापसंद, और अपने आसपास के बारे में भी काफी कुछ ऐसे सोचना शुरु कर दोगे, की आप कौन सी दुनियाँ में है। ये वो दुनियाँ तो नहीं, जिसे आप बचपन से जानते हैं या जिसके बारे में बचपन से पढ़ते या सुनते आए हैं। और ये दुनिया आपको अपनी आज की दुनिया से उतनी ही दूर लगेगी, जितना कम आपको इसके बारे में जानकारी है। 

जैसे पीछे एक केस स्टडी का छोटा सा हिस्सा लिखा। सिर्फ, उस सामान्तर घड़ाई के कुछ एक कोड। जैसे कट्टा, गाजियाबाद, किन्हीं बहन भाई की स्कूल में शादी और कट्टे का अलमीरा या ज़मीन में गाड़ने से भला क्या लेना देना? ये तो ऐसे नहीं हो गया जैसे कुछ भी कहीं से भी उठाकर जोड़ने की कोशिश? हाँ। अगर आपको हकीकत और सामान्तर घड़ाई वाली कहानी के abc तक ना पता हों तो। थोड़ा बहुत भी पता चलते ही आप दोनों कहानियों में सामंता देखने और समझने लगोगे। मगर जैसे ही उसको थोड़ा और आगे खँगालने लगोगे तो पता चलेगा की यहाँ तो काफी कुछ अलग है। जैसे कोई दो तस्वीरें देकर बोले, इनमें समानता और फर्क बताओ। फिर ये कोड क्या हैं यहाँ? ये कैसे मिलते जुलते से हैं? ये कोड गुप्त सुरँग वालों की देन हैं। जो इन कहानियों को या कहना चाहिए की इन लोगों को पता नहीं कबसे गुप्त तरीके से अपने अनुसार घड रहे होते हैं। ठीक ऐसे, जैसे, कोई कुम्हार घड़ा घडता है। मतलब, घड़ने वाले को पता है की उसे घड़ा कैसा चाहिए? और घड़ा ही चाहिए या फिर कुछ और। इसीलिए पीछे लिखा की कहाँ शांति होगी और कहाँ दंगे, इस सबका निर्णय वहाँ का गुप्त सिस्टम लेता है। 

अब प्र्शन तो ये भी हो सकता है की जब इतना कुछ गुप्त सिस्टम करता है, तो जुर्म करने वाले का कितना दोष? तभी तो कहते हैं, सब माहौल पर निर्भर करता है। आपके आसपास के सिस्टम पर निर्भर करता है। आपके अपने घर परिवार पर निर्भर करता है, की आपकी ज़िंदगी कैसी होगी। मुजरिम या गुनाहगार पैदा कौन होता है? किसके माथे पर कोई भी स्टीकर लगा आता है? उसे उसका परिवेश या माहौल बनाता या बिगाड़ता है। उस माहौल में किसी भी बच्चे के घर से बाहर के कितने तड़के लगते हैं, और किस तरह के तड़के लगते हैं, वो माहौल उसे वैसा ही बना देते हैं। जितना कम कोई भी घर अपने बच्चों पर वक़्त लगाता है, उतना ही ज्यादा बाहर का प्रभाव या दुष्प्रभाव रहता है। जितने ज्यादा पिछड़े इलाके होते हैं, दुष्प्रभाव भी उतना ही ज्यादा बुरा या ख़तरनाक होता है। ये गुप्त तंत्र और राजनीती अपने सबसे ज्यादा प्यादे या गुलाम यहीं से ढूँढ़ते हैं। क्यूँकि, वो इनके लिए कोई भी और किसी भी तरह का काम बड़ी आसानी से कर देते हैं। 

ऐसा नहीं है की अच्छे इलाकों में या देशों में गुनाह नहीं होते। वहाँ भी होते हैं। वहाँ और ऐसे इलाकों में फर्क इतना भर होता है की वहाँ अपनी ज़िंदगी चलाने या मात्र गुजारे के लिए गुनाह नहीं होते। वहाँ ज्यादातर गुनाह कंट्रोल के लिए होते है। पद और प्रतिष्ठा के लिए होते हैं। यहाँ तो लोगबाग ऐसे लगे होते हैं, जैसे कॉकरोच कुछ और ना मिलने पर, कॉकरोचों को ही खाने लग जाएँ। 

कहीं से आवाज़ आ रही हैं शायद? ओ फालतू दुनियादारी के किस्से कहानीयों पर इतना फेंकने वाले, फॉर्म क्यों नहीं भर रहे। फॉर्म? बताओ मुझे क्या किसी इलेक्शन में उठना है? यहाँ तो हर 6 महीने में इलेक्शन होते हैं। हर छह महीने में कोई न कोई फॉर्म भरो और फिर रिजल्ट के नाम पर तमासे देखो। तमासे? हाँ। जानते हैं आगे किसी पोस्ट में।       

Tuesday, October 14, 2025

Modren Warfare, Pros and Cons 1

इंसान को रोबॉट बनाने में तीन तरह के तरीके अहम हैं

एक, लालच 
दूसरा, डर 
और तीसरा? 
भ्रम , उलझन, आशँका, शक की स्तिथि पैदा करना। 
जैसे, किसी वस्तु की आपको जरुरत नहीं। मगर, उसकी जरुरत दिखाना या समझाना। जो काम आप खुद करने में सक्षम हों, मगर, आपको इतना लाचार या बेचारा कर देना की भ्रम या शक पैदा हो जाए, की क्या आप उसे कर सकते हैं?
जो आपका भला चाहते हों, उनके खिलाफ आपके दिमाग में शक या भ्रम पैदा करना। 
किसी भी तरह से कमजोर करना। वो मानसिक भी हो सकता है। शारारिक भी। और आर्थिक भी। और इन सबका मिला-जुला रुप भी।  
जहाँ काम आराम से किया जा सकता हो, वहाँ जल्दी-जल्दी करवाना। जैसे कुछ छूटा जा रहा हो। जहाँ काम सबको साथ लेकर या मिलकर करने से अच्छा बने, वहाँ छुपम-छुपाई खेलवाना, जिसकी कोई जरुरत ही ना हो। खासकर, किसी ऐसे इंसान को दूर रखकर, जो उस बारे में थोड़ा बहुत जानता हो और आपका हितकारी भी हो। मानकर चलो, की ज्यादातर छुपम-छुपाई वाले काम नुकसान करते हैं और वहाँ कुछ न कुछ छुपा हुआ गलत हो रहा होता है।      

साइकोलॉजी, आज के युग के युद्धों का बड़ा हिस्सा है।  
उसके साथ-साथ फिजियोलॉजी भी। शरीर के अंदर या बाहर के कैमिकल्स, द्रव्यों या तापमान वैगरह से छेड़छाड़। जो शरीर की क्रियाओं या प्रक्रियाओं पर प्रहार होता है। ये सब ना सिर्फ गुस्सा या शाँति लाने के साधन हैं। बल्की, बिमारियों के भी। ये सब सिर्फ आपके आसपास का वातावरण बदलने से भी किया जा सकता है और कुछ तरह के खाने-पीने, दवाई या कैमिकल्स से भी। और दोनों तरह के तरीके अपनाकर भी।  
आप क्या देखते हैं, क्या सुनते हैं, क्या खाते या पीते हैं, क्या पहनते हैं और कैसे लोगों के बीच रहते हैं, ये सब आपके जीवन पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। वो जो आप एक तरह के वातावरण और लोगों के बीच रहकर देखते, सुनते, खाते पीते या पहनते हैं, हो सकता है सही हो। मगर वही दूसरी जगह, वातावरण या लोगों के बीच नुकसान कर सकता है। इसलिए आप कैसे माहौल या लोगों के बीच रहते हैं, बहुत महत्व रखता है।      

कोई भी सिस्टम तीन तरह से काम करता है 

Autonomous System जैसे, ऑटोमैटिक वॉशिंग मशीन 

Semiautonomous System जैसे, सेमिऑटोमैटिक मशीन 

Enforced System जैसे, बिना वॉशिंग के कपड़े धोना   

इंसान को रोबॉट बनाने में ये तीनों सिस्टम अपनी-अपनी तरह की भूमिका निभाते हैं। तीनों सिस्टम अलग-अलग तरह से इंसान पर अपना प्रभाव छोड़ते हैं। 
सिस्टम की सबसे छोटी कड़ी आप खुद हैं क्यूँकि इंसान भी एक सिस्टम है, जो अपने को जीवित रखने और चलाते रहने के लिए अपने अंदर ढेर सारे और छोटे-छोटे सिस्टम लिए हुए है। ऐसे ही इंसान के बाद, उसके घर या आसपास का सिस्टम और फिर उससे बड़ा और बड़ा सिस्टम। जानने की कोशिश करें की ये तीन तरह के सिस्टम काम कैसे करते हैं?  

Autonomous, semiautonomous और enforced System  और कैसे वो आपको रोबॉट बनाते हैं? वो भी ऐसे की आपको पता तक नहीं चलता की आप जो कर रहे हैं, वो आप खुद नहीं कर रहे। बल्की, आपसे कोई करवा रहा 

है। या रहे हैं? मगर कौन? या कौन-कौन? और कैसे-कैसे? 

हमारे जैसे देश में जहाँ 24 घंटे, 365 दिन इलेक्शन चलते रहते हैं। वहाँ तो लगता है जैसे सब वही राजनीतिक पार्टियाँ करवा रही हैं। उन्हें इलेक्शन से पहले अपने जुए के कोढ़ों के कुछ नंबर चाहिएँ। और जैसे भी हो, वो 

उनके लिए कुछ भी करेंगे। और आपको उन्हीं नंबरों वालों से बचना है। संभव है क्या?